अव्वल तो इतने जज़्बात हैं नहीं मेरे पास. जो भी थोड़े बहुत हैं वह भी जल्दी बयान कर देता हूँ.
पाकिस्तान के आला शायर मुनीर नियाज़ी की एक मशहूर रचना है जहाँ वे फरियाद और रंज करते हैं की वे अक्सर देर कर देते हैं.
मेरा बिलकुल उल्टा है. कोई भी ज़रूरी या बिनज़रूरी, ज़िम्मेदाराना या ग़ैरज़िम्मेदाराना बात केहनी हो, किसी को आवाज़ देनी हो, किसी को मिलना हो, तो जल्दी कर देता हूँ.
अब जल्दी करने में फायदा या नुकसान इस में मैं नहीं पड़ता. फितरत ही जल्दी कर देने की है. मेरी बेटी हया, जो के हिंदी बिलकुल नहीं जानती, "जल्दी जल्दी" समझती है क्यूंकि मैं हर बात में कहता हूँ "जल्दी जल्दी करो."
मेरा तो यह आलम है की जब अकेला भी होता हूँ, और अक्सर मैं अकेला ही होता हूँ, तब भी अपने आप को कहता हूँ "ज़रा जल्दी, जल्दी करो, मयंक."
हाँ, यह सही है की सृष्टि में ठेहराव भी और जल्दबाज़ी भी है. आज भी ब्रह्माण्ड का इतनी गति से विस्तार हो रहा है मानो ब्रह्माण्ड भी जल्दी जल्दी कर रहा हो.
जल्दबाज़ी मुझे इस लिए याद आ गई क्यूंकि मन में मुनीर नियाज़ी के वह शेर मंडरा रहे थे आज सुबह ही से. बेहद शानदार कलाम है उनका. सुन लीजिये.
चलिए इस बहाने आज थोड़ी हिंदी/उर्दू भी लिख ली मैंने. बहानों, बहानों में अक्सर खूबसूरत काम हो जाया करते हैं.